विकसित भारत बिल्डाथॉन 2025 के थीम्स

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विकसित भारत बिल्डाथॉन 2025 के थीम्स में आत्मनिर्भर भारत, स्वदेशी, वोकल फॉर लोकल और समृद्ध भारत शामिल हैं।

 

लेकिन एक ऐसा "स्वीट पॉइजन/मीठा जहर" भी है जो दिन-प्रतिदिन आज के युवाओं में बढ़ता जा रहा है।

यह "स्वीट पॉइजन/मीठा जहर" क्या है? आइए जानते हैं - जुआ, सट्टा, चोरी, डकैती, ब्लैकमेलिंग और नशे की लत जैसी बुराइयाँ, जो हमारे देश में लगातार फैल रही हैं।

 

सवाल यह है - आखिर क्यों?

यह सब मीठा जहर केवल एक वजह से बढ़ रहा है - बेरोजगारी

यह मीठा जहर कैसे बनता है?

  • आय का अभाव: सबसे बड़ी समस्या सम्मानजनक आय का न होना है। जब पेट भरने और परिवार पालने का कोई जरिया नहीं होता, तो इंसान गलत रास्तों पर चलने को मजबूर हो जाता है।

  • समय का सदुपयोग न होना: खाली दिमाग शैतान का घर होता है। बेरोजगार व्यक्ति के पास अतिरिक्त समय होता है, और अगर उसका सकारात्मक इस्तेमाल न किया जाए, तो गलत संगत और बुरी आदतें लगने का खतरा बढ़ जाता है।

  • आत्म-सम्मान में कमी: समाज में अपने आप को "बेरोजगार" या "नाकामयाब" सुनना व्यक्ति के आत्मविश्वास को तोड़ देता है। इस हीन भावना से बाहर निकलने के लिए वह गलत रास्ते अपना लेता है।

  • भविष्य की अनिश्चितता: जब भविष्य अंधकारमय दिखता है, तो निराशा घर कर जाती है। यही निराशा कई बार आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर कर सकती है।

गलत रास्तों का आकर्षण क्यों होता है?

  • तेज़ और आसान पैसा: चोरी, डकैती, ब्लैकमेलिंग या ब्लैकमार्केटिंग से व्यक्ति को रोजगार की तुलना में कम समय में ज्यादा पैसा मिलने का लालच होता है।

  • पलायनवाद: नशीले पदार्थों का सेवन एक तरह से वास्तविकता से भागने का रास्ता है। यह व्यक्ति को उसकी दर्दनाक हकीकत से कुछ पल के लिए दूर ले जाता है।

  • गलत संगत का दबाव: जब कोई व्यक्ति ऐसे लोगों के बीच घिर जाता है जो इन गलत कामों में लिप्त हैं, तो उस पर "दोस्त बनाए रखने" या "डर" के कारण इन कामों में शामिल होने का दबाव बनता है।

आखिर बेरोजगारी इतनी ज्यादा क्यों बढ़ रही है? चलिए जानते हैं:

1. एजुकेशन सिस्टम

एस्पायरिंग माइंड्स की नेशनल एम्प्लॉयबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार, देश के लगभग 80% स्नातक युवा रोजगार के योग्य नहीं हैं, क्योंकि उन्हें सही स्किल्स नहीं सिखाई जातीं। हमारी शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी कमी यह है कि हम छात्रों को 10–15 साल तक केवल किताबी ज्ञान देते हैं, लेकिन उन्हें प्रैक्टिकल नॉलेज या रियल-लाइफ स्किल्स नहीं सिखाते।

जब यही छात्र नौकरी या बाजार में काम की तलाश में निकलते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि उन्होंने जो पढ़ा है, वह काम की जरूरतों से मेल नहीं खाता - और यही कारण है कि उन्हें नौकरी नहीं मिल पाती। यहाँ तक कि MCA, MA, MBA जैसे पोस्टग्रेजुएट कोर्स करने के बाद भी कई युवाओं को यह तक पता नहीं होता कि उन्हें जीवन में वास्तव में करना क्या है। क्योंकि उन्हें सही समय पर करियर गाइडेंस नहीं मिलती। और जब तक समझ आती है, तब तक परिवार का बोझ आ जाता है।

जिन कुछ युवाओं (जैसे IIT में पढ़ने वाले) को गाइडेंस मिलती भी है, उन्हें भी अधिकतर सिर्फ नौकरी पाने की सलाह दी जाती है, नौकरी बनाने की नहीं। हमारे देश में शिक्षा का ढांचा इस तरह बना दिया गया है कि हम सोचने वाले, नवाचार करने वाले इंसान नहीं, बल्कि कमान सुनने वाले "रोबोट" तैयार कर रहे हैं, जो विदेशों में जाकर दूसरों के लिए काम करें।

हमारे युवाओं को बस एक ही लक्ष्य सिखाया जाता है - सरकारी नौकरी या प्राइवेट नौकरी पाना। जबकि जरूरत इस बात की है कि हम उन्हें नौकरी करने के बजाय, नौकरी देने वाला बनने की सोच सिखाएँ।

इतिहास पर नजर डालें तो अंग्रेजों ने 1834 में थॉमस बबिंगटन मैकाले को भारत भेजा। उन्होंने 1835 में अपनी रिपोर्ट "Minutes on Education" में सुझाव दिया कि भारत को कमजोर करने के लिए यहाँ की शिक्षा प्रणाली को बदलना जरूरी है, क्योंकि उस समय भारत की शिक्षा पूरी तरह प्रैक्टिकल और जीवन आधारित थी। अंग्रेजों ने उसे बदलकर ऐसा सिस्टम बनाया जहाँ केवल किताबी ज्ञान और रट्टा मारने की संस्कृति रह गई। दुख की बात यह है कि आज लगभग 200 साल बाद भी, हम उसी सिस्टम के तहत पढ़ रहे हैं - नौकरी पाने के लिए, नौकरी बनाने के लिए नहीं।

2. स्किल्स और रोजगार के बीच की खाई

जिन लोगों के पास स्किल्स हैं, उनमें से केवल 20 प्रतिशत नौकरी कर रहे हैं। बाकी को यह नहीं पता कि काम कैसे मिलेगा और कैसे प्रयास किया जाए काम को ढूंढने के लिए।

 

समाधान: एक इनोवेटिव वेबसाइट

 

इसी समस्या का समाधान करने के लिए, हम एक इनोवेटिव वेबसाइट बना रहे हैं जो हर स्किल्ड व्यक्ति को सीधे रोजगार से जोड़ेगी। हमारी वेबसाइट के माध्यम से:

  • ✅ कोई भी स्किल्ड व्यक्ति स्वयं को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रेजेंट कर सकता है।

  • ✅ अपनी स्किल्स और प्रोडक्ट्स की जानकारी सीधे ग्राहकों तक पहुँचा सकता है।

  • ✅ लोकल मार्केट का विस्तार डिजिटल दुनिया तक कर सकता है।

विशेष रूप से महिलाओं के लिए: जो पापड़ बनाना, ब्यूटीशियन का काम, सिलाई-कढ़ाई आदि में निपुण हैं, लेकिन प्लेटफॉर्म के अभाव में अपनी पहचान नहीं बना पातीं - अब वे हमारी वेबसाइट के जरिए स्वयं को दुनिया के सामने प्रेजेंट कर सकती हैं!

ग्राहकों के लिए: अब उन्हें इलेक्ट्रीशियन, प्लम्बर, कारीगर या किसी भी स्किल्ड व्यक्ति को ढूंढने में भटकना नहीं पड़ेगा। हमारी वेबसाइट हर स्किल्ड व्यक्ति को एक स्ट्रांग डिजिटल आइडेंटिटी प्रदान करेगी।

बिजनेस ओनर्स और मैन्युफैक्चरर्स के लिए: वे हमारी वेबसाइट के माध्यम से सीधे स्किल्ड और एक्सपीरियंस्ड लोगों को चुन सकते हैं, जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

सबसे खास बात - प्रैक्टिकल एजुकेशन: हमारी वेबसाइट पर एक्सपीरियंस्ड एक्सपर्ट्स द्वारा प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी जाएगी। जब प्रैक्टिकल नॉलेज मिलेगी, तो स्किल्स बढ़ेंगी - और जब स्किल्स बढ़ेंगी, तो नए व्यवसाय खुलेंगे, मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी और बेरोजगारी घटेगी!

अंतिम लक्ष्य:
जब रोजगार पैदा होंगे, तो हमारा देश आत्मनिर्भर भारत, स्वदेशी, 'वोकल फॉर लोकल' और समृद्ध भारत की ओर तेजी से अग्रसर होगा!

सरकारी प्रयास और जमीनी हकीकत

यह सच है कि हमारी सरकारें काम कर रही हैं और करोड़ों रुपये खर्च भी कर रही हैं, लेकिन समस्या है कार्यान्वयन में! मौजूदा सिस्टम में कमियाँ हैं:

  • सिर्फ फाइलों में चक्कर

  • फोटो खींचकर रिपोर्ट भेजना = काम पूरा

  • विभागों में खानापूर्ति की मानसिकता

  • योजनाएं बनती हैं, लेकिन जमीन पर नहीं उतरतीं

हमारा सपना: भारत में हार्वर्ड जैसे संस्थान

अगर हमारे देश में हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड जैसी विश्वस्तरीय यूनिवर्सिटीज़ हों, तो:

  • हमारा हर युवा नौकरी मांगने वाला नहीं, बल्कि नौकरी देने वाला बनेगा

  • रिसर्च और इनोवेशन को बढ़ावा मिलेगा

  • ब्रेन ड्रेन रुकेगा - युवा विदेश नहीं जाएंगे

  • मेड इन इंडिया के साथ डिज़ाइन्ड इन इंडिया भी होगा

 

 




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