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योग एक प्राचीन भारतीय अभ्यास है जो 'युज' (जुड़ने) शब्द से बना है, जिसका अर्थ है शरीर, मन और आत्मा का मिलन, या व्यक्तिगत चेतना का सार्वभौमिक चेतना से जुड़ाव; इसमें आसन (शारीरिक मुद्राएँ), प्राणायाम (श्वास नियंत्रण), और ध्यान शामिल हैं, जो शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिक विकास के लिए एक समग्र मार्ग प्रदान करते हैं।
जुड़ावः योग का मूल अर्थ है स्वयं को प्रकृति और परम सत्ता से जोड़ना, मन और शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करना।
चित्त वृत्ति निरोधः पतंजलि के अनुसार, मन की चंचल वृत्तियों (विचारों) को रोकना ही योग है, जिससे एकाग्रता और शांति मिलती है।
आत्म-साक्षात्कारः योग का अंतिम लक्ष्य स्वयं को जानना (आत्म-साक्षात्कार) और मोक्ष या स्वतंत्रता प्राप्त करना है।
1.यम (नैतिक नियम): अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह।
2. नियम (व्यक्तिगत अनुशासन): शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्रणिधान।
3.आसन (शारीरिक मुद्राएँ): शरीर को स्वस्थ और स्थिर
बनाने के लिए विभिन्न मुद्राएँ (जैसे भुजंगासन, पश्चिमोत्तानासन)।
4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण): प्राण (जीवन-शक्ति) को
नियंत्रित करने के लिए साँस लेने के व्यायाम (जैसे कपालभाति)।
5. प्रत्याहार (इंद्रियों का वश में करना): बाहरी विषयों से इंद्रियों को हटाकर भीतर की ओर लगाना।
6. धारणा (एकाग्रता): किसी एक बिंदु पर मन को केंद्रित करना।
7. ध्यान (meditation): एकाग्रता की निरंतर प्रक्रिया।
8. समाधि (परमानंद): गहन समाधि की अवस्था, जहाँ व्यक्ति स्वयं को ब्रह्मांड के साथ एकाकार महसूस करता है।
शारीरिकः रक्तचाप में कमी, बेहतर मुद्रा, पाचन में सुधार, लचीलापन और शक्ति में वृद्धि।
मानसिकः तनाव कम करना, एकाग्रता बढ़ाना, मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक स्थिरता लाना।
आध्यात्मिकः आंतरिक शांति और आत्म-ज्ञान की प्राप्ति।
संक्षेप में, योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि एक पूर्ण जीवन-शैली है जो व्यक्ति को स्वस्थ, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने में मदद करती है।
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