पर्यावरण प्रकृति द्वारा प्रदत्त उन सभी पदार्थों से बना है जो स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक है पृथ्वी का धरातल एवं उसकी सभी प्राकृतिक दिशाएं तथा प्राकृतिक साधन भूमि और पानी पर्वत वह मैदान खनिज पदार्थ पौधे पशु जलवायु की शक्ति गुरुत्वाकर्षण विद्युत अवकरण शक्तियां जो पृथ्वी पर क्रियाशील है
पृथ्वी पर प्रकृति ने मानव के रहने योग्य व्यवस्था की है प्रकृति के द्वारा पर्याप्त मात्रा में प्राकृतिक संसाधन प्राप्त हुए हैं परंतु मनुष्य स्वयं पृथ्वी का पर्यावरण बिगड़ने के लिए उत्तरदाई है तेजी में बढ़ते हुए जनसंख्या के कारण जंगलों को खेती तथा आवास के लिए काटा जा रहा है और पर्यावरण का संतुलन खराब होता जा रहा है अधिक वन काटने से वर्षा कम होने लगी है जिससे पीने के पानी का स्तर घटता जा रहा है साथ ही शुद्ध वायु ना मिल जाने के लिए कारण अनेक प्रकार की बीमारियां उत्पन्न हो रही है यही कारण है कि प्रतिदिन पर्यावरण का संतुलन बढ़ता ही जा रहा है
पर्यावरण का अर्थ तथा परिभाषाएं :-
पर्यावरण दो शब्दों 'परि' तथा 'आवरण' से मिलकर बना है 'परि' का अर्थ है 'चारों' ओर तथा 'आवरण' का अर्थ है 'ढका हुआ' अर्थात वह सभी दिशाएं जो हमारे वायुमंडल को चारों ओर से ढके होती है, पर्यावरण कहलाती है
मेकाइवर अप पेज के अनुसार :-
पर्यावरण प्रकृति द्वारा उन सभी पदार्थों से बना है जो स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक है पृथ्वी का धरातल एवं उसकी सभी प्राकृतिक दिशाएं तथा प्राकृतिक साधन भूमि और पानी पर्वत वह मैदान खनिज पदार्थ पौधे पशु जलवायु की शक्ति गुरुत्वाकर्षण विद्युत एवं विकिरण शक्तियां जो पृथ्वी पर क्रियाशील है
जिस्बार्ट के अनुसार :-
पर्यावरण वह है जो एक वस्तु को चारों ओर से घिरे हुए हैं तथा उसे पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है
प्राकृतिक पर्यावरण:-
प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत जलवायु भूमि की उत्पादक क्षमता जंगल मैदान पहाड़ झड़ने समुद्र आकाश सूर्य चंद्रमा तारे पशु पक्षी कीट पतंगे आदि सभी सम्मिलित किए जाते हैं प्राकृतिक पर्यावरण प्रकृति द्वारा मनुष्य को प्रदान किया जाता है
सोरोकिन के अनुसार:-
भौगोलिक पर्यावरण का संबंध ऐसी प्राकृतिक दशाओं से है जो मनुष्य से प्रभावित हुए बिना अपना कार्य करती है तथा जो मनुष्य के अस्तित्व में कार्यों से स्वतंत्र रहते हुए स्वयं परिवर्तित रहती है
पर्यावरण के मुख्य भाग या वर्ग
पर्यावरण के व्यवस्थित अध्ययन के लिए उसका समुचित वर्गीकरण नितांत आवश्यक है सुविधा के लिए संपूर्ण पर्यावरण को तीन वर्गों या भागों में विभाजित किया गया है, यह है, (i) प्राकृतिक या भौगोलिक पर्यावरण, (ii) सामाजिक पर्यावरण तथा (iii) सांस्कृतिक पर्यावरण पर्यावरण के इन तीनों भागों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है
1.प्राकृतिक या भौगोलिक पर्यावरण
मनुष्य के जीवन में विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों एवं कारक ही प्राकृतिक या भौगोलिक पर्यावरण का निर्माण करते हैं इस प्रकार पृथ्वी आकाश वायु जल वनस्पति मौसम तथा सांसद जीव जंतु आदि सम्मिलित रूप से प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं प्राकृतिक या भौगोलिक पर्यावरण के निर्माण में मनुष्य की कोई भूमिका नहीं है, परंतु मनुष्य ने प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषण में बहुत अधिक योगदान दिया है मानव जन जीवन पर सार्वजनिक प्रभाव प्राकृतिक पर्यावरण का ही पड़ता है
2. सामाजिक पर्यावरण :-
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक से प्रभावित होता है समाज संबंधी सभी कारक सम्मिलित रूप में व्यक्ति के लिए सामाजिक पर्यावरण का निर्माण करते हैं इस प्रकार संपूर्ण सामाजिक ढांचा ही सामाजिक पर्यावरण है व्यावहारिक दृष्टिकोण से परिवार पास पड़ोस समुदाय खेल तथा विद्यालय आदि सभी सामाजिक पर्यावरण है व्यक्ति के जीवन पर सामाजिक पर्यावरण का भी विशेष प्रभाव पड़ता है
3. सांस्कृतिक पर्यावरण:-
मनुष्य द्वारा निर्मित वस्तुओं का समग्र रूप तथा परिवेश की सांस्कृतिक पर्यावरण है सांस्कृतिक पर्यावरण के दो रूप स्वीकार किए गए हैं जिन्हें क्रमश भौतिक सांस्कृतिक पर्यावरण और भौतिक सांस्कृतिक पर्यावरण कहा जाता है भौतिक पक्ष के अंतर्गत आवास औद्योगिक संस्थान उपयोग के उपकरण एवं वस्तुएं तथा मशीन आदि सम्मिलित की जाती है अब भौतिक सांस्कृतिक पर्यावरण के अंतर्गत धर्म संस्कृतियों भाषण लिपि और कानून तथा प्रथम को सम्मिलित किया जाता है मनुष्य के अतिरिक्त अन्य प्राणियों के पास सांस्कृतिक पर्यावरण नहीं है
पर्यावरण से लाभ तथा जनजीवन पर होने वाले प्रभाव:-
पर्यावरण संसार में रहने वाले प्रत्येक प्राणी के पूरे क्रियाकलाप को प्रभावित करता है अतः पर्यावरण से निम्नलिखित लाभ होते हैं
प्रत्येक प्राणी के जीवन का आधार स्वच्छ वायु है यह हमें स्वच्छ पर्यावरण से ही प्राप्त होती है
अच्छे पर्यावरण से भूमि की उभरा शक्ति बढ़ती है
शुद्ध जल की प्राप्ति शुद्ध पर्यावरण से होती है शुद्ध जल प्राणी का अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए आवश्यक है
वातावरण में पेड़ पौधे उचित तथा आवश्यक नमी प्रदान करते हैं
वनों जंगलों को ना काटने पर प्राकृतिक संतुलन नहीं होता
वनों से विभिन्न प्रकार की औषधीय जड़ी बूटियां आदि प्राप्त होती है प्राप्त होती है
पर्यावरण का जन जीवन पर प्रभाव
आज हमारे चारों ओर का वातावरण दूषित हो गया है विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियां उत्पन्न हो रही है पेड़ पौधे को प्रतिदिन काटा जा रहा है और परिणाम स्वरूप आज पर्यावरण प्रदूषण के प्रति विश्व स्तर पर चिंता व्यक्त की जा रही है परंतु इस प्रकार के कार्यों का पूर्ण उत्तरदायित्व मनुष्य पर ही है मनुष्य ने अपने वर्तमान स्वार्थ हेतु भविष्य को नष्ट कर दिया तथा जीव जंतु को भी हानि पहुंचाई है
बढ़ती हुई जनसंख्या धूल एवं दुआ उड़ते वहां वायुमंडल में फैलती हुई हानिकारक रक गैस पर्यावरण को दूषित कर रही है ऐसा लगता है कि यदि इन पर रोक ना लगाई गई तो यह संपूर्ण धरती जीवन वहीं हो जाएगी अतः आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने प्राकृतिक संस्थाओं का उपयोग एक सीमा में करें तथा पर्यावरण संतुलन को बनाए रखें ऐसा करने से प्राणी मात्र को लाभ मिलेगा तथा प्रत्येक प्राणी का अस्तित्व भी बना रहेगा
प्रदूषण का अर्थ:-
मनुष्य ही नहीं अपितु सभी सजीवों का जलवायु और मंत्र से बहुत ही गहरा संबंध है जब कभी कोई ऐसा बाहरी पदार्थ इसमें आ जाता है जिसके कारण इसके भौतिक और रासायनिक गुना में परिवर्तन हो जाता है एवं इसके गुना में हुए परिवर्तनों से मानव तथा उसके उपयोगी जीवो को हानि पहुंचती है तो उसे प्रदूषण कहते हैं
इन प्रकार जलवायु और मंत्र के भौतिक एवं जैविक गुना में होने वाले ऐसे परिवर्तनों को जो मनुष्यों के जीवन उसके रहन-सहन है उसके महत्व के अन्य जीवों को हानि पहुंचाते हैं प्रदूषण कहते हैं
जब पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न होता है तो प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़ सूखा भूकंप जल प्रदूषण वायु प्रदूषण मुद्रा प्रदूषण भूमि में कटाव आना और विभिन्न ऋतु में अंतर आ जाता है इसके परिणाम स्वरुप जनसंख्या वृद्धि गरीबी गंदगी अपराध भयंकर रोग उत्पन्न होते हैं
प्रदूषण एक ऐसी आवाज सुनने स्थित है जिसमें भौतिक रासायनिक एवं जैविक परिवर्तनों के द्वारा हवा जल और भूमि अपनी प्राकृतिक गुणवत्ता को हो बैठे हैं और इस कारण जीवन प्रक्रिया बाधित होती है और प्रगति रुक जाती है आज प्रदूषण की स्थिति इतनी गंभीर है कि इसे रोकने के तत्काल प्रयास किया जाए अतः बच्चों को कक्षाओं में पर्यावरण की शिक्षा दी जानी चाहिए और साथ ही उनकी आदत और रुचियां एवं अभी वृत्तियों को पर्यावरण सुधार में लगाना भी आवश्यक है
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