पेड़ों के संग बढ़ना सीखो
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(इस कविता के माध्यम से कवि ने पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा दी गई है)
बहुत दिनों से सोच रहा था,थोड़ी सी धरती पाव
उसे धरती में बाग बगीचा,जो हो सके लगाओ
खिले फूल फल,चिड़िया बोले प्यारी खुशबू डॉल
ताजी हवा जलाशय में अपना हर अंग भिगोले
हो सकता है पास तुम्हारे, अपने कुछ धरती हो
फूल फल लगे अपने अपवाहन हो, अपनी पारती हो
हो सकता है छोटी सी प्यारी हो,महक रही हो
छोटी सी खेती हो,जो फसलों से दहक रही हो
हो सकता है कई शांत जो पे घूम रहे हो
हो सकता है कहीं शहर में पक्षी झूम रहे हो
तो विनती है यही,कभी मत उसे दुनिया को खोना
पेड़ों को मत कटने देना मत चिड़ियों को रोने देना
एक एक पत ती पर हम हम सब के सपने सोते हैं
सके काटने पर वह भोले शिशु सर होते हैं
पेड़ों के संग बढ़ना सीखो,पेड़ों के संग हिलाना
पेड़ों के संग संग इतराना, पेड़ों के संग हिला ना
बच्चे और पेड़ दुनिया को हरा भरा रखते हैं
नहीं समझते जो,मैं दुष्कर्मों का फल चक दे है
आज सभ्यता वैसीबन,पेड़ों को काट रही है
जहर फेफड़ों में भर, जहर फेफड़ों में भर इंसानों को बांट रही है
( इस कविता से हमें ऐसी मिलती है कि हमें पेड़ को नहीं काटना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना चाहिए पेड़ों से ही हमें फल फूल सब्जियां और सांस लेने में सहायता मिलते हैं )
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