विजय पथ

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केचुआ और खरगोश में गहरी मित्रता थी दोनों साथ-साथ रहते और खेलते थे एक खरगोश ने कछुए से कहा मित्र क्यों ना एक दिन हमारी तुम्हारी दौड़ हो जाए मैं तैयार हूं कछुआ बोला दोनों ने अपने साथियों को बुलाकर दौड़ का रास्ता और गंतव्य स्थल तय किया फिर एक निश्चित दिन पर दौड़ की घोषणा हुई

 दौड़ के दिन की घोषणा होने पर खरगोश एकदम निश्चित था उसे पूरा विश्वास था कि कछुआ उसे तोड़ जीत ही नहीं पाएगा उधर केछुए ने अपनी तैयारियां तेज कर दी वह दौड़ जीतने को लेकर योजना बनाने  में जुड़ गया 

 तोड़ के लिए निश्चित दिन पर कछुआ और खरगोश निर्धारित स्थान पर दौड़ के लिए उपस्थित हुए गिलहरी ने सीटी बजाकर दौड़ प्रारंभ की कछुआ धीरे-धीरे चला जबकि खरगोश तेजी से तोड़ता हुआ बहुत आगे निकल गया एक पेड़ के पास पहुंचकर खरगोश ने सोचा कि कछुआ तो अभी बहुत पीछे होगा क्यों ना में थोड़ी देर पेड़ की छाया में आराम कर लो उसे विश्वास था कि कुछ देर बाद वह तेज रफ्तार में तोड़कर अपने गंतव्य स्थान तक कछुए से पहले ही पहुंच जाएगा खरगोश पेड़ की छाया में बैठ गया मंद मंद पवन बह रही थी पेड़ पर चिड़िया कहचहा रही थी ऐसे सुहाने वातावरण में खरगोश को नींद आ गई उधर कछुआ अपनी मंद गति से लगातार गणतर की ओर चला रहा

 गंदा स्थान पर पहुंचकर कछु नहीं इधर-उधर देखा उसे खरगोश कहानी दिखाई ना दिया उधर खरगोश की नींद खुली तो उसने गार्डन घूमर दूर तक देखा उसे कछुआ कहीं नहीं अरे अभी कछुआ यहां तक पहुंचा ही नहीं खरगोश ने सोचा और जनता की और तेजी से दौड़ चला गंडक स्थल पर पहुंच कर देखता है कि कछुआ वहां पहले से ही मौजूद है और उसे तमाम जानवर मलाई पहन रहे हैं

इस पाठ से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी किसी को कमजोर नहीं समझना चाहिए




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