गृह व्यवस्था के संचालन में आने वाली बाधाएँ तथा गृह व्यवस्था का महत्त्व
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यह सत्य है कि यह कुशल में बुद्धिमान गृहिणी अपने घर को नियोजित तथा सुव्यवस्थित रंग से चलाती है परंतु कभी-कभी ऐसी कठिन परिस्थिति पैदा हो जाती है के गृहिणी गृह व्यवस्था के सफल संचालन में असफल हो जाती है। अतः व्यवस्था के संचालन में आने वाली बाधाओं की गृहिणी को जानकारी होनी चाहिए जिससे वह इनसे यथासंभव निपट सके। गृह व्यवस्था के कुशल संचालन में आने वाली बाधाएँ निम्नलिखित प्रकार की होती है-
1. लक्ष्यों का ज्ञान न होना- गृह व्यवस्था के मुख्य बाधा लक्ष्यों की जानकारी न होना होती है। गृहिणी सही समय पर सही कार्य नहीं कर पाती और परिणामस्वरुप गृह व्यवस्था में समस्या उत्पन्न होती है।
2. नई जानकारी का अभाव- आज विज्ञान का युग है तथा प्रतिदिन नए-नए उपकरण आते रहते हैं, जिनसे समय व श्रम की बचत होती है। यदि गृहिणी को नये उपकरणों के बारे में जानकारी नहीं होगी तो गृह व्यवस्था में बाधा उत्पन्न होती है।
3. समस्याएँ व उनके समाधान के ज्ञान का अभाव- यह सत्य है कि गृह व्यवस्था में बहुत सी समस्याएँ आती है। प्रत्येक परिवार की अपनी समस्याएँ होती है तथा उसका समाधान भी उसी परिवार में ही संभव होता है। कुछ परिवारों में वही समस्या बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त हो जाती है और कहीं-कहीं वही समस्या एक विशालकाय समस्या के रूप में प्रस्तुत हो जाती है।
4. कार्य कुशलता में कमी आना- कभी-कभी परिवार में पर्याप्त साधन होते हुए भी उस परिवार की गृह व्यवस्था अच्छी नहीं होती। इसका कारण कार्य कुशलता में कमी आना होता है। साधनों की उपयोग विधि का ज्ञान नहीं होता और परिणाम स्वरुप गृह व्यवस्था सफल नहीं हो पाती।
5. परिवार के सदस्यों का असहयोग- गृह व्यवस्था कितनी भी ठीक हो, यदि परिवार के सभी सदस्य उसमें सहयोग नहीं करते हैं तो गृह व्यवस्था कुशलता पूर्वक संचालित नहीं हो सकती।
गृह व्यवस्था का प्रत्येक परिवार में विशेष महत्त्व होता है। जिस घर में गृह व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है, उसे घर में उन्नति होती है। परिवार के प्रत्येक सदस्य की आवश्यकता को तीव्रता के आधार पर एक व्यवस्थित कर्म में पूरा किया जा सकता है। परिवार में प्रत्येक सदस्य को अधिकतम संतुष्टि मिल सकती है।
गृह व्यवस्था के महत्त्व वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-
1. रहन-सहन के स्तर को ऊँचा बनाने में सहायक- परिवार के रहन-सहन का स्तर ऊंचा बनने में गृह व्यवस्था से पारिवारिक साधनों का पूर्ण उपयोग हो जाता है तथा समय, शक्ति व श्रम की बचत होती है।
2. पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक- परिवार वह केंद्र है, जहाँ परिवार के सभी सदस्यों की अनेक आवश्यकताएँ होती है तथा उनकी पूर्ति के लिए निरंतर रूप से प्रयास किए जाते हैं। परिवार की आवश्यकताएँ असीमित होती है तथा पूर्ति के साधन सीमित होते हैं।
3. पारिवारिक आय व्यय के नियोजन में सहायक- पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निरंतर धन की आवश्यकता होती है। प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति के लिए व्यय करना पड़ता है। पारिवारिक आय को ध्यान में रखकर बजट को तैयार करना चाहिए। बजट सदैव बचत का होना चाहिए।
4. बच्चों व पति की सफलता में सहायक- घर में उचित व्यवस्था होने से घर का वातावरण शांतिपूर्ण होता है जिसमें रहते हुए बच्चों को पढ़ने में बहुत मन लगता है अर्थात् उनकी शैक्षिक उन्नति होती है, साथ है उनका शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
5. पारिवारिक वातावरण सुखी बनाने में सहायक- जब परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं की अधिकतम संतुष्टि हो जाती है तो परिवार का वातावरण सौहार्दमय व संतोषजनक हो जाता है, परिणाम स्वरुप घर में नैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक तथा धार्मिक मूल्यों का विकास संभव होता है।
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