गृह व्यवस्था : गृह और परिवार के सन्दर्भ में

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 गृह व्यवस्था : गृह और परिवार के सन्दर्भ में 

Home Management in the Reference of Home and Family

 

⇒ प्रस्तावना 

   " गृह-व्यवस्था निर्णयों की एक श्रृंखला है, जिसमें पारिवारिक साधनों के अनुसार पारिवारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रयास में नियोजन, नियंत्रण एवं मूल्यांकन इन तीनों चरणों को सम्मिलित किया जाता है। "

      परिवार तभी सुखी व समृद्ध होता है जब उस परिवार को चलाने वाली निर्देशिका और गृहिणी एक कुशल व्यक्तित्व की हो। परिवार को अच्छा व सुखी बनाने के लिए गृहिणी को अनेक कार्य करने पड़ते हैं। किसी भी परिवार के स्तर को देखने से परिवार की संचालिका के गुणों की झलक मिलती है। 

⇒गृह व्यवस्था का अर्थ 

'गृह व्यवस्था' का शाब्दिक अर्थ है- 'घर की व्यवस्था या घर का प्रबन्ध।' गृह कार्यों को योजनाबद्ध एवं सनियोजित ढंग से सम्पन्न करना ही 'गृह व्यवस्था' कहलाता है। 

   वास्तव मे व्यवस्था शब्द मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से जुड़ा हुआ है। यह सारी प्रकृति एक व्यवस्थित ढंग से ही कार्य कर रही है। यदि एक आदर्श गृह के रूप मे दर्शाना है तो प्रत्येक कार्य व्यवस्थित ढंग से ही करना पड़ेगा।

   व्यवस्था या प्रबन्ध एक मानसिक प्रक्रिया है, जो योजना के रूप में प्रकट होती है तथा योजना के अनुरूप ही सम्पादित एवं नियन्त्रित होती है। व्यवस्था के रूप में योजना का कार्यान्वयन, लक्ष्य-प्राप्ति का उत्तम साधन बन जाता है। 

   "व्यवसाय कार्यकारी नेतृत्व का कार्य है। यह मुख्यत: एक मानसिक प्रक्रिया है। यह कार्य नियोजन, संगठन तथा सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों के कार्यों के नियन्त्रित से सम्बंधित है।"

   क्रो एवं क्रो के अनुसार‚ " गृह व्यवस्था घर के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक सीमित साधनों के विषय में उचित निर्णय लेने की प्रक्रिया है।" 

⇒ गृह व्यवस्था की परिभाषा

  गृह व्यवस्था के संदर्भ में 'निकिल तथा डरसी'  ने अपने विचार इस प्रकार प्रस्तुत किए हैं- " गृह-व्यवस्था परिवार के लक्षण की पूर्ति के उद्देश्य से परिवार के साधनों के प्रयोग का नियोजन नियंत्रण व मूल्यांकन है।" अर्थात पारिवारिक लक्षण की प्राप्ति के लिए गृह प्रबंध योजना बद्ध ढंग से करना चाहिए तथा समय-समय पर मूल्यांकन भी आवश्यक है। क्रो एवं क्रो के अनुसार‚ " गृह-व्यवस्था ग्रह के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक सीमित साधनों के विषय में उचित निर्णय लेने की प्रक्रिया-मात्र है।" गुड जॉनसन ने गृह-व्यवस्था को इन शब्दों में परिभाषित किया है " गृह व्यवस्था वीडियो की ऐसी श्रृंखला है जो पारिवारिक लक्षण की प्राप्ति के लिए पारिवारिक साधनों को प्रयुक्त करने की प्रक्रिया प्रस्तुत करती है।"

⇒ गृह-व्यवस्था के चरण 

    उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि गृह-व्यवस्था के तीन चरण होते हैं‚ इन्हें गृह-व्यवस्था के तत्व या अंग भी कहा जा सकता है।

  •  नियोजन-  किसी कार्य की सफलता के मूल में नियोजन का बहुत महत्व होता है। उदाहरण के लिए घर में चार बच्चे हैं। परिवार के आय के अनुसार उनके शिक्षा की एक योजना बनानी होगी अर्थात योजना का अर्थ है कि भविष्य में हमें 'क्या और कैसे करना है' इसका पूर्ण निश्चय कर लिया जाना। इससे भविष्य में होने वाला कार्य सहल हो जाता है और उसकी सफलता में संदेह भी काम रह जाता है।

  • नियंत्रण- ​​​नियोजित कार्य को करने में नियंत्रण की आवश्यकता होती है। यदि कार्य करने में नियंत्रण नहीं रह पाया तो नियोजित कार्य भी पूर्ण नहीं हो सकता। नियंत्रण में परिवार के सभी सदस्यों का सहयोग आवश्यक है।

  •  मूल्यांकन- कार्य को संपन्न करने के पश्चात् उसका मूल्यांकन आवश्यक है। पूर्व नियोजन के अनुसार कार्य करने में कितनी सफलता और कितनी असफलता मिली तथा क्या उचित हुआ वह क्या अनुचित हुआ। इसका निर्धारण करने को मूल्यांकन कहते हैं।

⇒ गृह-व्यवस्था के उद्देश्य 

     गृह एक अनिवार्य संस्था है। मनुष्य के जीवन में घर का विशेष महत्व है। परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं को पूर्ण करना गृहणी का उत्तरदायित्व होता हैं।

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