बुद्धिमान लड़का

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विराज एक बहुत ही बुद्धिमान लड़का था। वह कक्षा 8 में पढ़ता था। एक बार बरसात का मौसम था। जैसे ही स्कूल की छुट्टी हुई तो बारिश शुरू हो गई। विराज ने सोचा कि वह स्कूल के पास अपने मित्र के घर रुक जाए तथा इसके लिए उसने अपनी मम्मी को भी फोन कर दिया।

 शाम होने वाली थी। सूरज काले बादलों के पीछे छिपा था लेकिन वर्षा रख चुकी थी। काले बादलों से लग रहा था कि वर्ष कभी भी हो सकती है। वह अपने मित्र के घर को छोड़कर अपने घर वापस जा रहा था। वह जल्दी-जल्दी बड़े-बड़े कदम रखकर घर जल्दी पहुंचना चाहता था। सड़कों पर कहीं स्थान पर पानी भरा था। पेड़ तथा पौधे ताजा तथा चमकदार लग रहे थे यद्यपि वह बहुत देर से नहीं पहुंचा था लेकिन अंधेरा हो रहा था बारिश से सभी वस्तुएं गीली हो रही थी।

 जैसे ही वह मुख्य सड़क को छोड़कर अपने घर की ओर गया, उसने देखा कि दो व्यक्ति एक स्ट्रीट लाइट के नीचे खड़े थे। उसमें से एक व्यक्ति लंबा तथा पतला था और दूसरा छोटा तथा मोटा था। लंबे व्यक्ति के हाथ में एक अटैची थी तथा वह बार-बार अपने हाथ की घड़ी को चिंतित नजरों से देख रहा था। विराज ने उन दोनों को दिखा। वे कुछ संदिगध व्यक्ति से दिखाई दे रहे थे। वह उनके लंबे कोर्ट तथा हैट के कारण उनके चेहरे साफ साफ नहीं देख पा रहा था।

 विराज के पिता एक पुलिस इंस्पेक्टर थे। उसे कुछ गलत सा महसूस हो रहा था। वह गली से हटकर घास पर होता हुआ सड़क के किनारे पेड़ों के पीछे जा छिपा। वहां पर छिपकर वह दोनों व्यक्तियों की बातों को ध्यान से सुनने लगा। उनमें से मोटा व्यक्ति कह रहा था, " अजय, हमने राजवीर के पेपर तो चुरा लिए लेकिन बस अभी तक नहीं आए।"

" हां", लंबे आदमी ने कहा, " मोटू, चिंता की कोई बात नहीं। वह अभी आ रहा होगा। "

 थोड़े समयानतराल के बाद, एक सफेद मारुति कर उसके पास आकर रुकी। कर का चालक बोला, " जल्दी अंदर आ जाओ। अब रामशरण की बारी थी। "

 विराज ने कर का नंबर लिख लिया। वह समझ गया कि मामला कुछ गंभीर है। वह कर से आने वाली आवाज को सुनने की कोशिश कर रहा था। इससे पहले कि वह कुछ सुनता उसने सोचा कि कहीं वह उद्योगपति रामशरण की बातें तो नहीं कर रहे हैं। वह दोबारा सड़क पर चलने लगा और पास के पी. सी.ओ. मैं गया तथा पुलिस स्टेशन में फोन मिलाया। उसके पिताजी बोले, " हेलो, इंस्पेक्टर शर्मा बोल रहा हूं। "

 विराज ने टेलीफोन के रिसीवर को रुमाल से ढककर कहा, " सर, मैं आपको एक जरूरी सूचना देना चाहता हूं।" " लेकिन कौन बोल रहा है? " इंस्पेक्टर शर्मा ने पूछा।

" सर, कुछ संदिगध व्यक्ति उद्योगपति रामशरण के घर सफेद मारुति कर में गए हैं। कर का रजिस्ट्रेशन नंबर है...........।" क्या मैं तुम्हारा शुभ नाम जान सकता हूं?" इंस्पेक्टर शर्मा ने दोबारा पूछा" आपका सच्चा मित्र," विराज ने इतना कहकर फोन का रिसीवर रख दिया। उसने अपने पिताजी को अपना नाम नहीं बताया। वह घर पर आ गया। उसकी मम्मी बड़ी उत्सुकता से उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। विराज ने रास्ते में होने वाली किसी की बात को अपनी मम्मी को भी नहीं बताया।

 वह अपने बिस्तर पर ही अपने पिताजी की प्रतीक्षा कर रहा। वहां क्या हुआ वह जानना चाहता था। उसके पिताजी रात्रि में देर से आए। उसके पिताजी ने कमरे में आते ही पूछा, " विराज कब आया था? "

" कुछ जरूरी बात है? " उसकी मम्मी ने पूछा।

" नहीं, आज मुझे किसी ने फोन किया था। उसकी आवाज बिल्कुल विराज से मिल रही थी। उसने हमें कुछ बदमाश व्यक्तियों के रामचरण के घर में जाने की सूचना दी। वहां दो व्यक्तियों ने कुछ कागज लेट थे, " इंस्पेक्टर शर्मा ने कहा। विराज ने नाटक किया कि जैसे वह सो रहा हो। विराज की मम्मी ने पूछा, " उन्होंने पेपर क्यों लूट? "

" पहले उन्होंने जबरदस्ती राजवीर से महत्वपूर्ण कागज लिए थे। रामचरण तथा राजवीर दोनों अगले चुनाव के उम्मीदवार हैं। यह उसी से संबंधित है", उसके पिताजी ने कहां।

 विराज इस केस में अपने पिताजी की मदद करने की सोच रहा था। अगले दिन, रविवार था। इसलिए उसने अगले दिन क्या करना है सोचा उसने जो सुना था उसको दोबारा समझने की कोशिश की। वह लगभग बिस्तर पर ही था जब वह उन बदमाशों की बातों को याद कर रहा था। क्या वह संत सिंह था हां,पक्का वही था विराज ने सोचा। यही सोचते सोचते वह नहीं जानता कि वह कब सो गया।

 अगले दिन, विराज गली में उन व्यक्तियों को देखा हुआ घूम रहा था। वह सवेरे से ही बाहर सड़क पर घूमने लगा। दोपहर तक सब ठीक रहा। जब उसे भूख लगने लगी। तो वह सोचने लगा कि घर जाकर दोपहर का भोजन कर लूं यह छोड़ दूं। लेकिन तभी उसने एक मोटर साइकिल देखी। वह उसे पर बैठे दोनों व्यक्तियों को पहचान गया। व्हीकल वाले ही दोनों व्यक्ति थे। वह मोटरसाइकिल के पीछे भागा। वह पछताया कि वह अपनी साइकिल नहीं लाया था। विराज ने देखा की मोटरसाइकिल मुख्य सड़क पर एक घर के अंदर गई थी। घर संत सिंह का था। वह घर के पास गया। संत सिंह तथा दोनों व्यक्ति लोन में खड़े थे। वहां पर एक चमकदार लाल मारुति कर भी थी। विराज ने कर को ध्यान पूर्वक देखा। वह ऐसी लग रही थी जैसे कि उसे पर अभी रंग किया हो।

 यह सब देखकर वह नजदीक के टेलीफोन बूथ पर गया। उसने पुलिस स्टेशन में फोन मिलाया। कोई बोला, " हेलो! पुलिस स्टेशन। " राजवीर ने कहा, " कृपया मेरी इंस्पेक्टर शर्मा से बात करवाइए।"

" कौन बोल रहा है। "                       

 विराज ने कहा, " आपका सच्चा मित्र। "

 कुछ समय बाद इंस्पेक्टर शर्मा बोल, "हेलो!"

 विराज ने कहा," सर,मैं सच्चा मित्र हूं। "

" हां, मित्र,में क्या कर सकता हूं, " " मुस्कुरा कर इंस्पेक्टर शर्मा ने कहा।

" सर,सफेद कर जो कल डकैती में प्रयुक्त हुई थी, शायद वह गांधी रोड पर संत सिंह के घर में हैं.

 कर अभी-अभी लाल रंग का पेट की हुई लग रही है. दोनों व्यक्ति जिन्होंने रामशरण के घर से कागज चुराए थे, वह भी वहां पर हैं, " युवराज ने कहा था फोन के हेड स्टेट को केरडल पर रख दिया।

 विराज संत सिंह के घर वापस आ गया। वह थोड़ी सी देर एक पेड़ के नीचे खड़ा था, वहां से उसे संत सिंह का घर साफ दिखाई दे रहा था।

 पुलिस इंस्पेक्टर शर्मा के साथ वहां आई। उसने संत सिंह, दोनों आदमियों तथा कार्य को पकड़ लिया। विराज बहुत खुश था। उसने चोरों को रंगे हाथों पकड़वा दिया था। वह शाम को घर वापस आया। उसकी मम्मी उसके भोजन न करने पर बहुत गुस्सा हुई। विराज ने हल्का-फुल्का नाश्ता किया। आज वह रात्रि का भजन अपने पिताजी के साथ करना चाहता था।

 हमेशा की तरह, उसके पिताजी देर से आए। उसके पिताजी ने कहा, " आज एक सच्चे मित्र के कारण, हमने कुछ चोरों को पकड़ा। " विराज ने पूछा, वह सच्चा मित्र कौन था? "

" मैं नहीं जानता। लेकिन, उसकी बहादुरी  के लिए मैं उसे यहां लैपटॉप देना चाहता हूं", उसके पिताजी ने कहा।

 विराज ने उत्साहित होकर कहा, " यदि मैं आपके सच्चे मित्र को ले आऊँ तो। "

" लेकिन मैं जानता हूं कि वह सच्चा मित्र कौन है, " पिताजी ने कहा। " वह कौन है? "

" वह लेन के नीचे रहता है मैं उसे लैपटॉप देने जा रहा हूं, " विराज की आंखों में देखकर उसके पिताजी ने कहा। विराज मुस्कुराया। वह जानता था, कि उसके पिताजी एक खेल-खेल रहे थे। उसके पिताजी लगभग सब जानते थे। उन्होंने उसे गले लगाया और कहा, " मैंने तुम्हें पहली बार के फोन पर ही पहचान लिया था। तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो। "

 शिक्षा: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, कि साहस तथा बुद्धिमानी से ही बहादुरी पैदा होती है।




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