गृहविज्ञान के तत्व तथा क्षेत्र

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   गृहविज्ञान के तत्व तथा क्षेत्र 

   Elements & Scope of Home Science

 

⇒ प्रस्तावना

     घर एक ऐसा स्थान होता है जहाँ प्रत्येक मनुष्य सुख एवं शांति से परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है तथा अपने नित्य कर्त्तव्यो तथा अधिकारों का ज्ञान अर्जित करता है| सुख दुःख में एक दूसरे के साथ सहयोग करना सीखता है। गृह में ही मनुष्य की आवश्यकताएँ पूरी होती है और संतुष्टि के साथ उसका जीवन व्यतीत होता है।  इस सब के पीछे एक कुशल ग्रहिणी का हाथ होता है।  इसलिए आज ग्रहविज्ञान के क्षेत्र की सीमा बहुत विस्तृत हो गई है। प्रस्तुत अध्याय में ग्रहविज्ञान के क्षेत्र, प्रकर्ति और तत्वों के साथ-साथ महत्तव के विषय में भी जानकारी दी गई है।

  गृहविज्ञान का अर्थ तथा परिभाषा 

     गृहविज्ञान दो शब्दों 'गृह' और 'विज्ञान' से मिलकर बना है। 'गृह' का अर्थ है 'घर' जिसमे परिवार निवास करता है, 'विज्ञान' का अर्थ है 'सैद्धांतिक अध्ययन'। गृहविज्ञान का अर्थ है घर व परिवार से सम्बंधित सभी पहलुओं का सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक अध्ययन। गृहविज्ञान में परिवार के सभी आवश्यकताओं की पूर्ति, उनके विकास व समृद्धि के विषय में विस्तार से अध्ययन किया जाता है। 

  ⇒ गृहविज्ञान की परिभाषा  

     गृहविज्ञान विषय को पहले इंग्लैण्ड में घरेलू विज्ञान (Domestic Science) तथा अमेरिका में अर्थशास्त्र (Home Economics) के रूप में जाना जाता था। भारत में इस गृह विज्ञान (Household Art and Home Science) तथा घरेलू विज्ञान एवं गृह शिल्प (Domestic Science and Home Craft) पुकारा जाता था। आजकल इस विज्ञान का अध्ययन 'गृहविज्ञान' के अंतर्गत किया जाता है।

    अमेरिका के गृह अर्थशास्त्र संघ के अनुसार, "गृह अर्थशास्त्र शिक्षा का विशिष्ट अंग है, जिसके अंतर्गत आय–व्यय, भोजन की स्वच्छता, रुचिपूर्णता, वेशभूषा, आवास आदि के रुचिपूर्ण उपयुक्त चयन और तैयारी तथा परिवार या अन्य मानव समुदायों द्वारा उनके उपयोग का अध्ययन किया जाता है।"

    अतः गृह विज्ञान के अंतर्गत आहार में पोषण, गृह प्रबंध, शिशु विकास, ग्रह की अर्थव्यवस्था, घर की सफाई, वैस्त्रों की देखरे, सिलाई–बुनाई, कढ़ाई, स्वास्थ्य रक्षा, समाज के मान्यता तथा बदलाव, शरीर रचना आदि सैद्धांतिक नियमों का अध्ययन कराया जाता है। एक समझदार ग्रहणी इस ज्ञान काग्रहणी अपनी गृहस्थी संचालन में उपयोग करते हुए अपने परिवार को सुखी तथा समृद्ध बना सकती है।

⇒ गृह विज्ञान का उद्देश्य

   गृह विज्ञान एक पूर्ण व्यावहारिक एवं महत्वपूर्ण विज्ञान है। इसका मुख्य उद्देश्य मनुष्य को सुखी तथा समृद्ध बनाना है। इस विषय के अंतर्गत मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। इस विषय के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  •  गृहविज्ञान विषय के माध्यम से ही ग्रहणी अपने परिवार के सदस्यों में आदर्श गुना का विकास कर श्रेष्ठ तथा होनहार नागरिकों का निर्माण कर सकती है।
  •  गृहविज्ञान विषय को पढ़कर ग्रहण के सौंदर्यात्मक ज्ञान में वृद्धि होती है।
  •  गृहविज्ञान में आय–व्यय और बचत संबंधी ज्ञान दिया जाता है। गृहविज्ञान का अध्ययन करके अगर हनी अपने पारिवारिक बजट को एक आदर्श बजट के रूप में बना सकती है।
  •  गृह विज्ञान विषय का ज्ञान होने पर ग्रहणी को घर के प्रति अपने कर्तव्य और उत्तरदायित्वों का बोध होता है।
  •  व्यर्थ पड़ी वस्तुओं से अच्छी में उपयोगी वस्तुएं तैयार करना गृहविज्ञान में सिखाया जाता है।
  •  गृहविज्ञान विषय का उद्देश्य अनेक व्यवसाय की जानकारी देना भी है।

⇒ गृहविज्ञान के तत्व 

    किसी वस्तु के निर्माण में सहायक पदार्थों को तत्व कहते हैं। गृहविज्ञान में वह सभी घटक, विषय तथा क्रियाएं सम्मिलित की जाती हैं जो गृहविज्ञान की रचना करती है। गृहविज्ञान के तत्वों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-(क) मुख्य तत्व तथा (ख) गोण तत्व।

  (क) मुख्य तत्व

  •  भजन तथा पोषण विज्ञान- मनुष्य की मुख्य आवश्यकता भजन होती है। अतः गृह विज्ञान में इस बात का अध्ययन किया जाता है कि भोजन में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं, उनकी हमारे शरीर में क्या उपयोगिता है और उन्हें भोजन में कैसे सुरक्षित रखा जाता है? भोजन पकाने की विधियाँ, कम खर्चे मे उत्तम में संतुलित भोजन तैयार करना आदि बातों का अध्ययन गृहविज्ञान के अंतर्गत किया जाता है।
  •  गृह–सज्जा एवं व्यवस्था- गृह का उचित चयन, बनावट, स्थिति, सफाई तथा सुरक्षा में सजावट संबंधी नियमों का ज्ञान गृह विज्ञान में किया जाता है।
  •  शरीर विज्ञान- गृहविज्ञान में शरीर के सभी अंगों का पूर्ण ज्ञान कराया जाता है। कोशिका, ऊतक, तंतु, अस्थियाँ, नलिकाओं, शरीर के विभिन्न अंगों आदि की बनावट, उनके कार्य और उपयोगिता आदि का अध्ययन गृह विज्ञान में किया जाता है।
  •  वस्त्र विज्ञान- यह मनुष्य के प्राथमिक आवश्यकता है। विभिन्न प्रकार के तंतुओं का निर्माण तथा वर्गीकरण का वैज्ञानिक अध्ययन, विभिन्न वेस्टन की विशेषताओं का ज्ञान, आयु, लिंग और कार्य एवं जलवायु के अनुसार वस्त्रो का चुनाव, वस्त्र की परिषद जा सीमित धन में उपयोगी तथा आकर्षक वस्त्रो का चयन आदि शामिल होते हैं।
  •  समाज शास्त्र- विवाह की परिभाषा, परिवार का विकास, परिवार के प्रकार, पारिवारिक विघटन,पारिवारिक समस्याएं विभिन्न मानव संगठन आदि महत्वपूर्ण बातों का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता है।
  •  परिचर्या एवं प्राथमिक चिकित्सा- अचानक होने वाली दुर्घटनाओं में किए जाने वाले प्राथमिक उपाय, विभिन्न प्रकार की दवाइयों मरहम-पट्टी आदि करने, रोगी की उचित सेवा में देखभाल और रोगी हेतु आहार की जानकारी इसके अंतर्गत दी जाती है।
  • ​​​​​​​ हस्तकला तथा शिल्प-कला- हस्तकला तथा शिल्प-कला के माध्यम से विभिन्न प्रकार की रंगोली बनाना, घर को सजाना, भजन परोसना आदि बातों की जानकारी मिलती है।
  •  कीट विज्ञान- विभिन्न प्रकार के रोगों के कीटाणुओ का स्वरूप तथा उनके जन्म की अवस्थाएं तथा इन्हें दूर करने के उपाय का अध्ययन इसके अंतर्गत किया जाता है।
  • ​​​​​​​ मनोविज्ञान- मनोविज्ञान मानव के विभिन्न अभिव्यक्तियों, रुचियों, योग्यताओं एवं क्षमताओं आदि का ज्ञान प्रदान करने वाला विज्ञान है। अतः मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार का दर्पण है।
  • ​​​​​ (ख) गौण तत्व

  •  नियोजन- किसी भी कार्य को करने से पहले उसकी योजना बनाना नियोजन कहलाता है। गृह विज्ञान में प्रत्येक कार्य को करने से पहले उसकी योजना अवश्य बनाई जाती है। उदाहरण के लिए, महीने में धन खर्च करने से पहले बजट बना लेने पर वह करना आसान होता है।
  •  नियंत्रण-  मातृ योजना बनाने से ही कार्य पूर्ण नहीं होता अपितु योजना पर नियंत्रण भी आवश्यक है। आज चकाचौंध के युग में यदि हम खर्चे पर नियंत्रण नहीं कर पाए तो बजट बनाना व्यर्थ हो जाता है।
  •  मूल्यांकन-  प्रत्येक कार्य को करने के पश्चात उसका मूल्यांकन भी आवश्यक है। उदाहरण के लिए, बजट में वस्त्रों पर जितना धन व्यय किया गया, वह आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त है या नहीं, इसका मूल्यांकन करना चाहिए में आवश्यकता प्रतीत होने पर इसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है।
  • ⇒ गृहविज्ञान का क्षेत्र 

          गृह विज्ञान के क्षेत्र का वर्णन निम्नलिखित शिक्षकों के अंतर्गत कर सकते हैं-

  •  गृह-प्रबंध एवं गृह-शिल्प-  गृहविज्ञान के अंतर्गत अध्ययन किए जाने वाले विषयों में 'गृह-प्रबंध एवं गृह-कला'  का विशेष स्थान है।
  • ​​​ शरीर-विज्ञान एवं स्वास्थ्य-रक्षा-  इस विषय के अंतर्गत शरीर की रचना, अंगों की बनावट, विभिन्न संस्थाओं के कार्य-प्रणाली, उनके महत्व आदि का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए पाचन संस्थान, रक्त-परिचालन संस्थान,  उत्सर्जन आदि प्रणालियों का अध्ययन।
  •  आहार एवं पोषण-विज्ञान- आहार एवं पोषण- विज्ञान भी एक विस्तृत क्षेत्र वाला विज्ञान है। इस विज्ञान के दो पक्ष होते हैं, प्रथम 'आहार' तथा द्वितीय 'पोषण' इन दोनों पक्षों से संबंधित विभिन्न तथ्यों का अध्ययन किया जाता है।
  •  जीवाणु-विज्ञान- ​​​​​​​विज्ञान के आधुनिक खोजना द्वारा यह सिद्ध हो गया है कि बैक्टीरिया या अणुजीवियो का हमारे आहार एवं स्वास्थ्य से घनिष्ठ संबंध है। इन जीवा nuo को का हमारे आहार पर अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों प्रकार से प्रभाव पड़ता है इसके अतिरिक्त अनेक बैक्टीरिया विभिन्न संक्रामक रोगों को फैलाने का कार्य भी करते हैं
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